चैत्र नवरात्रि और दुर्गा चालीसा:
चैत्र नवरात्रि के शुभ अवसर पर, माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा चालीसा का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। यह नौ दिनों तक शक्ति, भक्ति और साधना का पर्व है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
इस पावन समय में दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भक्तों को शक्ति, समृद्धि और संकटों से मुक्ति मिलती है। माँ दुर्गा की कृपा से हर कठिनाई आसान हो जाती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
जय माता दी!
दुर्गा चालीसा पाठ के लाभ:
दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में अनेक सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। यह पाठ देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने का एक सशक्त माध्यम माना जाता है। आइए इसके प्रमुख लाभों को समझते हैं:
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सकारात्मक ऊर्जा का संचार – देवी दुर्गा की स्तुति करने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जिससे मानसिक शांति और उत्साह बना रहता है।
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नकारात्मकता और भय से मुक्ति – दुर्गा चालीसा पाठ करने से व्यक्ति भय, शंका और नकारात्मक विचारों से दूर रहता है और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
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संकटों से रक्षा – यह पाठ व्यक्ति को जीवन के विभिन्न संकटों और बुरी शक्तियों से बचाने में सहायक होता है। माता दुर्गा की कृपा से हर संकट का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है।
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मानसिक शांति और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति – इसका नियमित पाठ मन को शांत करता है और ध्यान केंद्रित करने में सहायता करता है, जिससे व्यक्ति अधिक प्रोडक्टिव और शांतिपूर्ण जीवन जी सकता है।
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स्वास्थ्य में सुधार – आध्यात्मिक उपायों का सकारात्मक प्रभाव मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। तनाव कम होने से शरीर पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
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सौभाग्य और सफलता – यह पाठ करने से जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आती है। कार्यों में सफलता मिलने लगती है और अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।
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परिवार में सुख-शांति – यदि पूरे परिवार के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाए, तो घर में सुख-शांति और आपसी प्रेम बना रहता है।
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कर्मों का शुद्धिकरण – देवी दुर्गा की उपासना से नकारात्मक कर्मों का प्रभाव कम होता है और व्यक्ति सत्कर्मों की ओर अग्रसर होता है।
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आत्मिक बल और आत्मनिर्भरता – इस पाठ से व्यक्ति के भीतर आत्मबल बढ़ता है और वह अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम होता है।
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आध्यात्मिक उन्नति – दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर ऊँचा उठता है और उसे जीवन के गूढ़ सत्य समझने में सहायता मिलती है।
श्री दुर्गा चालीसा हिंदी भाषा मैं :
नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।
निराकार है ज्योति तुम्हारी, तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥ ४
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥८
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥१२
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥१६
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजे॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥२०
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥२४
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥२८
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥३२
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब विनशावै॥३६
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥
जब लगि जियउं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥४०
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥
|| इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्णम ||