Caste Census 2025: केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना को दी मंज़ूरी, जानिए क्या है पूरा मामला

Caste Census 2025:

 

नई दिल्ली, 30 अप्रैल 2025केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसले में आने वाली राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत गणना (Caste Enumeration) (Caste Census) को शामिल करने को मंज़ूरी दे दी है। यह घोषणा आज केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक कैबिनेट ब्रीफिंग के दौरान की।

इस निर्णय को सामाजिक न्याय और नीति निर्माण की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। आइए समझते हैं इस फैसले से जुड़ी अहम बातें:


मुख्य
निर्णय: क्या कहा सरकार ने?

  • कैबिनेट अप्रूवल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में Cabinet Committee on Political Affairs ने जातिगत जनगणना को मंज़ूरी दी।
  • Structured Process: सरकार का दावा है कि डेटा transparently और systematically collect किया जाएगा ताकि policy-making में सही decisions लिए जा सकें।
  • Opposition पर निशाना: मंत्री वैष्णव ने Congress और अन्य विपक्षी दलों पर जाति जनगणना को सिर्फ़ राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।


जनगणना
में देरी क्यों?

  • यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन COVID-19 pandemic के कारण टाल दी गई थी।
  • अब इसे एक comprehensive demographic exercise के रूप में किया जाएगा।


राज्य
सरकार बनाम केंद्र सरकार

  • बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों ने पहले ही अपनी जातिगत सर्वे (Caste Survey) कर ली है।
  • केंद्र सरकार ने इन सर्वे को politically motivated और methodologically flawed बताया।


संवैधानिक
दृष्टिकोण

  • Caste Census एक Union Subject है, यानी इसकी ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है।
  • सरकार का कहना है कि यह फैसला समाज के सभी वर्गों की भागीदारी और हितों को ध्यान में रखकर लिया गया है।


कैबिनेट
की अन्य मंज़ूरियाँ

  • 2025-26 के लिए गन्ने की Fair and Remunerative Price (FRP) को मंज़ूरी।
  • Shillong से Silchar को जोड़ने वाले हाईवे प्रोजेक्ट को हरी झंडी।


जातिगत
जनगणना: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

Pre-Independence

  • ब्रिटिश भारत में 1881 से 1931 तक जातिगत जनगणना होती रही।
  • आज़ादी के बाद केवल SCs और STs के लिए डेटा एकत्र किया जाता रहा।

SECC 2011

  • एक Socio-Economic and Caste Census किया गया, लेकिन उसमें आए डेटा में भारी inconsistencies पाई गईं और रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।


जातिगत
जनगणना: फायदे और चुनौतियाँ

फायदे
  • सभी जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
  • Targeted welfare policies बनाने में आसानी होगी।
  • Reservation system की प्रभावशीलता का आकलन किया जा सकेगा।
चुनौतियाँ
  • हजारों जातियों और उपजातियों को सही ढंग से classify करना मुश्किल।
  • लोग गलत जानकारी देकर फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं।
  • इससे जातिगत पहचान और सामाजिक विभाजन को बढ़ावा मिल सकता है।
राजनीतिक असर
  • यह मुद्दा लंबे समय से कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों की मांग रहा है।
  • बिहार के 2023 के जातिगत सर्वे के बाद इस पर राष्ट्रव्यापी बहस और तेज़ हो गई थी।
  • इसके परिणामों का असर आरक्षण नीति और चुनावी रणनीतियों पर गहरा पड़ सकता है।

निष्कर्ष:-

जातिगत जनगणना को मंज़ूरी देना सरकार का एक डेटाड्रिवन और इन्क्लूसिव अप्रोच की ओर कदम है। लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि डेटा कितनी सटीकता और निष्पक्षता से इकट्ठा किया जाता है और उसका उपयोग किस उद्देश्य से किया जाता है।

और ख़बरों के लिए यहाँ देखें:- https://khabrisite.com/
Follow us on Facebook Page:- https://www.facebook.com/share/16AQF4yTNW/?mibextid=wwXIfr

Leave a Comment